रांची. झारखंड की
बेटियां बिकती हैं। महानगरों में। कारोबार करोड़ों का है। इनकी कीमत भी एक
हाथ से दूसरे हाथ ठीक वैसे ही बढ़ती है जैसे किसी उत्पाद की। पुलिस गिरफ्त
में पन्नालाल महतो के खुलासे इसकी तसदीक करते हैं। ‘बेटी बेचवा’ पन्नालाल
करोड़पति है। उस पर खूंटी जिले की कई लड़कियों को महानगरों की मंडी में
बेचने का आरोप है। पन्नालाल अकेला नहीं। बेटियों के व्यापार में कई शामिल
हैं। कुछ दिन पूर्व पुलिस को सौंपी गई रिपोर्ट में इस काम में लगी 240
प्लेसमेंट एजेंसियों का जिक्र है।
झारखंड के प्राय: हर गांव में ऐसे बदनसीब मां-बाप मिल जाएंगे जिनकी
बेटी एक बार बाहर गई तो फिर लौटकर नहीं आई। लातेहार जिले की सुखमनी बिरजिया
(बदला हुआ नाम) तो अब निराश हो चुकी है। बेहतर भविष्य के लिए सुखमनी ने
बेटी को बाहर भेजा था। 2005 से वह बेटी का चेहरा देखने को तरस रही है। पहले
तो कुछ दिनों तक बेटी का फोन आया, बाद में बंद हो गया। ऐसी कई कहानियां
हैं। कुछ सामने आईं, असंख्य दबी हैं। लेकिन इस बड़े सवाल पर राजनीतिक दल मौन
रहे। किसी की चुप्पी टूटी भी तो वह आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाई। विधानसभा
के लिए हुए दो चुनावों में अब तक जारी घोषणापत्रों में भी इनका जिक्र नहीं
है। उम्मीद है इस बार पार्टियों का घोषणा-पत्र इस संवेदनशील सवाल पर मुखर
होगा।
राज्य गठन के बाद तेज हुई रफ्तार
2001 में मानव तस्करी के सिर्फ दो मामले दर्ज थे, 2012 में संख्या 76
थी और आज यह 330 पहुंच गई है। पुलिस में सर्वाधिक मुकदमे बीते तीन साल में
लिखाए गए हैं।
हर चौथे घर से लड़की गायब
मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाले बैद्यनाथ कुमार कहते हैं रांची,
खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लातेहार, गोड्डा जिले के ग्रामीण अंचल के हर चौथे
घर की एक लड़की गायब है।
दिल्ली में काम कर रहीं हैं एजेंसियां
दीया सेवा संस्थान (डीएसएस) की ओर से झारखंड पुलिस को सौंपी गई
रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में कार्यरत 240 प्लेसमेंट एजेंसियां राज्य में
सक्रिय हैं। रिपोर्ट में इन एजेंसियों की सूची शामिल है।
तस्करी रोकने के लिए राजनीितक कोशिशें जरूरी
पार्टियों के लिए मानव तस्करी मुद्दा ही नहीं है। इस रोकने के लिए राजनीतिक कोशिशें नहीं हुई हैं। डॉ. रोज केरकेट्टा, शिक्षाविद
शिक्षा और रोजगार मिलने से यह समस्या दूर हो सकती है। इसके लिए राजनीतिक कोशिशें भी जरूरी हंै। महुआ माजी, अध्यक्ष महिला आयोग