रांचीः मानव तस्करी पर नियंत्रण के लिए जिला स्तर पर बनायी गयी एंटी
ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट एएचटीयु क्या हाथी दांत बनकर रह गयी है? झारखंड के
आठ जिलों में बने एएचटीयु में से कुछ को छोड़ दें तब बाकी की स्थिति कुछ
ऐसी ही है। चैंकाने वाली बात यह कि नियम कानून की पेचिदगियों के कारण 2015
में झारखंड में मानव तस्करी और गुमशुदगी से संबंधित केवल 152 मामले दर्ज
किये गये हैं और जिस एएचटीयु को इलाके में सक्रिय ट्रैफिकर्स का डेटा तैयार
करने की जिम्मेदारी दी गयी है तकनीकी खामियों के कारण वो इस काम को नहीं
कर पा रहा है। और तो और बच्चों को मुक्त कराने के लिए एएचटीयु की जो टीम
दूसरे राज्यों में जाती है उसके पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते इसलिए उनमें
ऐसी कार्रवाई के दौरान रूचि का भी अभाव दिखता है। यह बात एएचटीयु से जुड़े
कुछ अधिकारियों और मानव तस्करी पर काम कर रहे स्वयंसेवी संस्थाओं से बात
करने के बाद सामने आयी है। इन सवालों का जवाब ढूंढ़ते हुए न्यूज विंग ने जब
पड़ताल शुरू की तब कई तथ्य सामने आये।
सबसे पहले यूनिट के हाथी का
दांत होने की बात को हाल की एक घटना से इसे समझने की कोशिश करते हैं। रांची
के बुंडू प्रखंड में किसी परिवार का बच्चा गुम हो जाता है। इस परिवार को
थाने में शिकायत करने के लिए बुंडू नहीं, वहां से 33 किलोमीटर दूर रांची
में बने एएचटीयु आना पड़ेगा क्योंकि एएचटीयु योजना में जिला स्तर पर इसे
स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। इसी युनिट में बच्चे के गुमशुदा
हाने की शिकायत दर्ज की जायेगी। तब जाकर इस मामले की जांच के लिए बुंडू
थाना के ही पुलिसकर्मी जांच अधिकारी बनाये जायेंगे। उसके बाद ही इस मामले
की जांच शुरू होगी। अब इस घुमावदार रास्ते की परेशानियों से बचने के लिए
बच्चों या किसी महिला के गुमशुदा हो जाने की स्थिति में ग्रामीण प्राथमिकी
दर्ज कराने के झंझट से बचना चाहते हैं। परिणाम स्वरूप मानव तस्करी या
बच्चों के लापता होने के अधिकांश मामले दर्ज नहीं किये जा रहे हैं और
आंकड़ों में अंतर भी दिखता है।
एक दूसरी परेशानी की भी चर्चा यहां
करते चलते हैं। बीते साल की एक घटना है। बुढ़मू के एक बच्चे को घरेलू काम
करवाने के बहाने हरियाणा के किसी परिवार में ले जाया गया। थाना में मामला
दर्ज करने में परेशानी हुई। तब बच्चे के घरवालों ने दीया सेवा संस्थान के
बैजनाथ कुमार से संपर्क किया और उनके सहयोग से एएचटीयु में प्राथमिकी दर्ज
की गयी। आगे क्या होता है कि बच्चे के रेस्क्यू के लिए टीम को हरियाणा जाना
है और इस टीम के पास हरियाणा जाने और वहां से लौटने के लिए पर्याप्त
किराया नहीं है। बच्चे के घरवालों को कथित तौर पर 1500 रूपये की मदद करनी
पड़ती है तब उनका बच्चा घर वापस आ पाता है। चुंकि यह काम एएचटीयु का था
क्योंकि इसका गठन ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए ही हुआ है और उसे इस मद में
खर्च करने के लिए केन्द्र सरकार पैसे देती है। पर इसके पीछे वजह क्या है
इसका स्पष्ट उत्तर कोई नहीं दे पाता। इस मसले पर एएचटीयु से जुड़े एक
अधिकारी बताते हैं कि उनके सामने कई बार ऐसी स्थिति भी आयी है कि रेस्क्यू
के लिए दूसरे राज्य जाना हो तब उन्हें खुद के पैसों से टिकट का इंतजाम करना
पड़ता है और बाद में ट्रवलिंग अलावेंस का आवेदन करने पर पैसे उन्हें मिल
जाते है।
एएचटीयु से ही जुड़े एक अधिकारी बताते हैं कि व्यवहारिक
रूप से ये समस्या भी है कि जब एएचटीयु को यह सूचना मिलती है कि झारखंड के
किसी गांव का बच्चा दूसरे राज्य में है और वहां की पुलिस से संपर्क कर इसकी
सुचना दी जाती है। लेकिन वो इस बात को गंभीरता से नहीं लेते और जब तब
झारखंड की टीम वहां पहुंचती है तब तक कार्रवाई करने में काफी देर हो चुकी
होती है।
कैसे शुरूआत हुई एएचटीयु की?
राष्ट्रीय मानवाधिकार
आयोग ने 2004 में बच्चों और महिलाओं की मानव तस्करी से संबंधित एक शोध
रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे देश के
पुलिसकर्मियों को ट्रैफिकिंग जैसे अपराध के बारे में बहुत कम जानकारी होती
है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आम तौर पर पुलिस की जैसे कार्यशैली
रही है कि वह हत्या, दुष्कर्म, फिरौती और विधि व्यवस्था जैसे मामलों को
निबटाने में व्यस्त होती है इसलिए मानव तस्करी जैसे अपराध को सामान्य तौर
पर पुलिस कम प्राथमिकता देती है। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद गृह
मंत्रालय ने मानव तस्करी को सरकार के लिए गंभीर मुद्दा माना और एएचटीयु
योजना की नींव रखी गयी।
इस संबंध में गृह मंत्रालय द्वारा जारी
दस्तावेज के अनुसार राज्य सरकारों को ऐसी युनिट चलाने के लिए राज्य सरकार
भवन की व्यवस्था करती है और फर्नीचर, वाहन का खर्च केन्द्र सरकार के जिम्मे
होता है। वित्तीय वर्ष 2011-12 में देशभर में शुरू किये गये 335 एएचटीयु
के लिए 53.97 करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था।
इस
संबंध में गृह मंत्रालय ने योजना के संबंध में जो दस्तावेज जारी किये हैं
उसमें कहा गया है कि भारत में लोगों के बीच मानव तस्करी के खिलाफ कानून को
व्यवहार में लाने की प्रतिक्रिया को मजबूत करने के लिए प्रशिक्षण देने के
साथ-साथ उनमें क्षमता संवर्द्धन किया जायेगा। इसके लिए भारत के गृह
मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स और क्राइम विभाग के संयुक्त प्रयास
से तीन वर्षीय परियोजना की शुरूआत अप्रैल 2006 से की गयी थी।
मकसद
था कानून को अमल में लानेवाले अधिकारियों जिसमें पुलिस और वादी दोनों शामिल
हैं उनमें मानव तस्करी की समस्या की समझ विकसित करने के अलावा बेहतर जांच
पड़ताल करने और अपराधियों पर मुकदमा चलाने के संबंध में जागरूकता लाना। उस
वख्त पांच राज्यों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया था जिसमें महाराष्ट, गोवा,
पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और बिहार राज्य शामिल थे। इसमें मानव तस्करी
के विभिन्न पहलुओं की जानकारी भी दी गयी है। इसमें तस्करी की व्याख्या करते
हुए कहा गया है कि व्यक्तियों खासकर महिलाओं और बच्चों की ट्रैफिकिंग
अलग-अलग उद्देश्यों के लिए की जाती है। इसमें उनके व्यवसायिक यौन उत्पीड़न
से लेकर, जबरदस्ती मजदूरी कराना, जबरन शादी करवाना, घरेलू कामकाज करवाना,
एडाॅप्शन, भीख मंगवाना, सार्वजनिक खेल में भागीदारी इत्यादि बातें शामिल
हैं। मंत्रालय ने साफ किया है कि मानव तस्करी एक संगठित अपराध है जो कि
मानवाधिकारों का बहुत गंभीर हनन करता है। मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में
माना है कि सरकार के लिए इस तरह के आपराधिक क्रियाकलापों के बढ़ने की
रिपोर्ट चिंता का विषय है। विशेष रूप से उस वख्त जब इस अपराध के लिए बने
कानून प्रवर्तन की प्रतिक्रिया बहुत प्रभावी नहीं रह गयी है।
भारत के गृह मंत्रालय की एंटी ट्रैफिकिंग प्रोजेक्ट
प्राथमिक तौर पर यह स्कीम राज्य सरकार द्वारा लागू की जानी है जो इसके लिए
फंड जारी करेगी। एएचटीयु इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड पुलिस माॅर्डनाइजेशन
डिविजन द्वारा जबकि ट्रेनर की ट्रेनिंग के लिए फंड ब्यूरो आॅफ पुलिस रिसर्च
एंड डेवलपमेंट के माध्यम से दी जायेगी। राज्य सरकार द्वारा अन्य रिकरिंग
काॅस्ट वहन करने की बात कही गयी है।
खूंटी एएचटीयु की उपलब्धि ज्यादा
राज्य के मानव तस्करी के सघन प्रभावित आठ जिलों में एएचटीयु संचालित किया
जा रहा है। वर्ष 2011 में खूंटी, सिमडेगा, गुमला और दुमका में ये इकाईयां
स्थापित की गयी वहीं। वर्ष 2012 में रांची, चाईबासा, लोहरदगा और पलामू में
एएचटीयु थाने शुरू किये गये। इन आठों थानों में सबसे ज्यादा सक्रियता खूंटी
एएचटीयु की दिखती है। यहां से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 से
दिसंबर 2015 तक लापता होने के कुल 172 मामले दर्ज किये गये जिसमें से 41
महिलाओं और 37 पुरूषों को बरामद कर लिया गया है। इस दौरान 59 ट्रैफिकर्स के
खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर 59 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। खूंटी एएचटीयु
ने अधिकांश मामलों में ट्रैफिकर्स की निशानदेही के लिए दीया सेवा संस्थान
के बैजनाथ कुमार से मदद ली। इसी सूचना पर उन्हें गिरफ्तार भी किया गया।
जिला स्तर पर एएचटीयु को दिये जाने वाले फंडः
कार्यालय के लिए 35,000 रूपये देने का प्रावधान है। कार्यालय में एक
कमरा जिसमें शौचालय भी हो, एक आॅफिस टेबल, 10 कुर्सी, एक कम्प्यूटर टेबल,
किताबों और रिकार्ड रखने के लिए अलमीरा की व्यवस्था करनी होगी। भवन और
नागरिक सुविधाएं राज्य सरकार को उपलब्ध कराना होगा जबकि बाकी खर्च भारत
सरकार के पुलिस आधुनिकीकरण योजना से की जायेगी।
मोबाइल फोन और कैमरा के लिए 21,000 रूपये
प्रत्येक एएचटीयु में दो मोबाइल फोन और फोटोग्राफी के लिए डिजिटल कैमरा रखने का प्रावधान किया गया है। इस मद की राशि भारत सरकार के पुलिस आधुनिकीकरण योजना से दी जाती है।
वाहन के लिए सात लाख रूपये
सभी एएचटीयु में एक चार पहिया और एक दो पहिया वाहन उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। यह राशि भी पुलिस आधुनिकीकरण योजना से दी जायेगी।
ब्राॅडबैन्ड कनेक्शन सहित लैंडलाइन फोन के लिए 2000 रूपये देने का प्रावधान है।
युनिट में इंटरनेट कनेक्शन सहित अत्याधुनिक कम्प्यूटर उपलब्ध रखना है। इसके लिए 50 हजार रूपये दिये जाते हैं।
समसामयिक कानून की और अन्य किताबों के लिए 10 हजार रूपये दिये जाते हैं।
यानी एक एएचटीयु का कुल खर्च 8.18 लाख पड़ता है।
एएचटीयु में उपलब्ध पुलिस बल
इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी, सब इंस्पेक्टर रैंक के दो अधिकारी, दो हेड कान्सटेबल और चार कान्स्टेबल नियुक्त किया जाना है।
आवश्यकतानुसार इन विभागों के एक एक प्रतिनिधि एएचटीयु में शामिल होंगे:
महिला एवं बाल विकास विभाग ,स्वास्थ्य विभाग,श्रम एवं नियोजन विभाग
एक काउंसलिंग एक्सपर्ट जिसे हर महीने आठ हजार रूपये दिये जायेंगे।
एक काउंसलिंग एक्सपर्ट जिसे हर महीने आठ हजार रूपये दिये जायेंगे।
भुक्तभोगियों की मदद के लिए फंड की व्यवस्था की गयी है जिसमें उनके लिए
भोजन, दवाईयां, कपड़े, मनोवैज्ञानिक परामर्श और रेस्क्यू के लिए परिवहन
खर्च शामिल है। इस मद में एक लाख रूपये सालाना दिया जाता है।
खूंटी एएचटीयु ने जब भी मदद मांगी हम तैयार थे: बैजनाथ कुमार
एएचटीयु के काम के संबंध में दीया सेवा संस्थान के बैजनाथ कुमार का कहना है कि खूंटी एएचटीयु ने जब भी उनकी संस्था से मदद मांगी उन्होंने हमेशा उनकी मदद की और इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखा। खूंटी जिला में प्राथमिकी, रेस्क्यु और ट्रैफिकर्स की गिरफ्तारी भी हुई है जो अन्य जिलों के मुकाबले ज्यादा है। उन्होंने कहा कि ट्रैफिकर्स को ट्रेस करना आसान नहीं होता है। इसके लिए काफी तैयारी करनी पड़ती है। साथ ही कई सूचनाएं इकट्ठी करनी होती हैं।
एएचटीयु के काम के संबंध में दीया सेवा संस्थान के बैजनाथ कुमार का कहना है कि खूंटी एएचटीयु ने जब भी उनकी संस्था से मदद मांगी उन्होंने हमेशा उनकी मदद की और इसका सकारात्मक परिणाम भी दिखा। खूंटी जिला में प्राथमिकी, रेस्क्यु और ट्रैफिकर्स की गिरफ्तारी भी हुई है जो अन्य जिलों के मुकाबले ज्यादा है। उन्होंने कहा कि ट्रैफिकर्स को ट्रेस करना आसान नहीं होता है। इसके लिए काफी तैयारी करनी पड़ती है। साथ ही कई सूचनाएं इकट्ठी करनी होती हैं।