रांची : चाहे सरकार हो, समाज हो, गैरसरकारी संगठन हो या अभिभावक, मीडिया
और पुलिसिंग। हर स्तर पर एकजुट होकर सकारात्मक सोच के साथ मानव तस्करी पर
मंथन करना होगा। उसकी मॉनिटरिंग करनी होगी। तभी इस तरह की समस्या का समाधान
निकलेगा। यह महत्वपूर्ण है कि पलायन के मामले में अब भी समाज में शिक्षा
और जागरूकता की कमी है। बहुत कम मामले थानों तक पहुंचते हैं। पलायन संबंधी
कानून की समझ अब भी लोगों में कम है। इसलिए इस संबंध में लोगों को जानकारी
देने की आवश्यकता है।
यह बातें शुक्रवार को कचहरी स्थित होटल पिनाकल में हुई कार्यशाला में
उभर कर सामने आई। कार्यशाला दीया सेवा संस्थान के तत्वावधान में हुई। विषय
था 'झारखंड में मानव तस्करी की रोकथाम में सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं की
भूमिका।
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कार्यशाला में प्रदेश के विभिन्न जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों से
सामाजिक संगठन, मुखिया आदि भी शामिल होने आए थे। संस्थान की सचिव सीता
स्वांसी ने विषय प्रवेश कराया। झारखंड स्टेट चाइल्ड प्रोटेक्शन सोसाइटी के
राज्य समन्वयक नीरज सिन्हा ने ग्रामीण बाल संरक्षण समिति, किशोर न्याय
बोर्ड और बाल पलायन को विस्तार से बताया। कहा, मानव तस्करी से अहम मुद्दा
बाल तस्करी है। बच्चों को उम्र वर्ग के आधार पर बांटते हुए उनकी तस्करी और
दुष्परिणाम को स्पष्ट किया।
नीरज सिन्हा का जोर बच्चों के पुनर्वास पर था। उनका कहना था कि बच्चों
को गलत हाथों से बचाकर कोई उनपर एहसान नहीं करता, बल्कि यह बच्चों का अपना
अधिकार है। बच्चों को बेहतर परिवेश, शिक्षा आदि पर जोर देते हुए सिन्हा ने
बताया कि जेल या बाल सुधार गृह से बेहतर ऑब्जर्वेशन होम (संप्रेषण गृह)
बनाया गया है। वहां बच्चों को बेहतर परिवेश देकर उनके कोमल मन को सकारात्मक
दिशा में परिपक्व किया जाता है।
बेड़ो की मुखिया, तोरपा, लोहरदगा आदि जिलों से आए प्रतिनिधियों ने मानव
तस्करी के शिकार लोगों की कहानी बताई। वे गांव से बाहर कमाने के लिए तो गए,
लेकिन उनके बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं मिली। इसमें दो ऐसे उदाहरण भी
सामने आए, जिसमें दोनों बच्चियां महानगरों से बचाकर झारखंड तो लाई गई,
लेकिन उनके साथ प्रताड़ना की हद इस कदर तक हो गई थी कि उनकी जान को बचाया
नहीं जा सका।
प्लान इंडिया के बाल संरक्षण समन्वयक राजीव सिन्हा ने मानव तस्करी,
गुमशुदगी, फर्जी विवाह और लैंगिक अपराध को बताया। कार्यशाला में मानव
तस्करी रोकने के कानूनी प्रावधान व केस स्टडी भी दिखाई गई। दीया सेवा
संस्थान के वैद्यनाथ कुमार ने सभी आगंतुकों को कार्यशाला में शामिल होने के
लिए धन्यवाद दिया।
गैरसरकारी संगठन एक्शन एड की श्वेता ने बताया कि पंचायत स्तर पर
रिकार्ड कीपिंग की जरूरत है। कौन व्यक्ति कहां जा रहा है, किसके साथ जा रहा
है, कितने दिनों के लिए जा रहा है आदि उसमें दर्ज हों। बिना सत्यापन किसी
को बाहर जाने से रोका जाना चाहिए। इतना ही नहीं, रेस्क्यू कराए गए लोगों के
पुनर्वास की भी व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि वे दोबारा राज्य से बाहर
जाने की सोंचे भी नहीं।
कार्यशाला में दैनिक जागरण के संपादक कमलेश रघुवंशी ने पलायन के मामले
में मीडिया की भूमिका को भी कटघरे में खड़ा किया। बताया कि अमूमन प्राथमिकी
होने के बाद ही मीडिया ऐसे मामले में रुचि लेती है। न तो उसे नियमित चेक
किया जाता है, न फॉलोअप ही किया जाता है। गिरफ्तारी, प्राथमिकी व पलायन से
हटकर जब तक रिपोर्ट लोगों के सामने नहीं आएगी, अभियान सफल नहीं होगा।
प्लेसमेंट एजेंसी से लेकर बिचौलियों तक पर मीडिया को नजर रखनी होगी। पलायन
के कारण तलाशने होंगे। जब झारखंड की लड़कियां महानगरों में काम कर सकती हैं,
तो वह अपने राज्य में क्यों नहीं। उन्हें अपने राज्य में भी प्रशिक्षण
क्यों नहीं दिया जा रहा है। इसके लिए निरंतर माहौल बनाने की जरूरत है। तभी
मानव तस्करी रोका जा सकेगी।