एक बेटी की दर्दनाक कहानी

उसकी आंखों में दर्द भी है और आक्रोश भी। मात्र 12 साल की उम्र में उसने अब तक जो सहा, वह है भी दर्दनाक। आक्रोश उनके खिलाफ, जो अपने थे, पर शोषण के गर्त में झोंकने में जरा भी नहीं झिझके। अब एक ही सवाल है उसका, क्या बेटी होना इतना बड़ा गुनाह है?

सिसई के गांव आनंदपुर सेंइदा की सिलिया को उसकी ही मौसी ने कुछ रुपयों की खातिर दिल्ली में बेच दिया। दिन-रात जानवरों की तरह काम करना, फिर भी पेट भर भोजन न मिलना और जरा-जरा सी बात पर मालिक की मार खाना। तीन साल तक हर दिन उसकी यही दिनचर्या थी। फिर जैसे-तैसे भागकर रांची पहुंची। गांव खबर भेजी, पर मां-बाप ने उसे पहचानने से ही इनकार कर दिया। आज करीब सात महीने बीच चुके हैं, लेकिन माता-पिता उसे लेने ही नहीं आते।
सिलिया आज स्वयंसेवी संस्था दीया की संचालिका सीता स्वांसी के साथ रहती है। स्कूल भी जाती है, पर हर दिन इंतजार होता है कि आज मां की ममता जागेगी, पिता का प्यार उमड़ेगा और वे उसे लेने आएंगे। सिलिया कहती है कि मुझे नौकरानी की तरह तीन साल तक काम करने का दुख नहीं है।
दुख ये है कि सगे चाचा ने दिल्ली भेज दिया, अपनी मौसी ने बेच दिया और आज मां-बाप ने भी मुंह मोड़ रखा है। पर, जब बड़ी हो जाऊंगी और कुछ बन जाऊंगी, तो इन लोगों इनकी गलतियों का अहसास जरूर कराऊंगी।

क्या है मामला
सिलिया ने बताया कि 2008 में नौ साल की थी, तो उसकी मौसी दिल्ली ले गईं। उन्होंने उसे मात्र तीन हजार रुपए में एक घर में बेच दिया। वहां उससे झाड़ू-पोंछा, बर्तन-कपड़े धोना और पैर दबवाने तक का काम कराया जाता। सुबह पांच बजे से रात 12 बजे तक काम करती, फिर भी कई बार मार-पीट की जाती। पेट भर खाना भी नहीं दिया जाता। 27 अक्टूबर 2012 को एक पड़ोसी से सौ रुपए लेकर ट्रेन पर चढ़ गई और रांची आ गई। ट्रेन से उतरकर वह कांटाटोली स्थित नेताजी नगर पहुंच गई और एक घर में काम देने की गुजारिश की। उस घर में रहने वाली विशाखा कुंडू ने जब उसकी पूरी कहानी सुनी तो इसकी सूचना स्वयंसेवी संस्था दिया की संचालिका सीता स्वांसी को दी। सीता ने उससे पूछताछ की तो पता चला उसे इतना याद था कि वह सिसई की है और पिता का नाम जीवन गुडिय़ा है।सीता उसे अपने घर ले गई और पुलिस की मदद से माता-पिता को खोजने की कोशिश की। अखबारों में भी उसकी जानकारी निकलवाई गई।
मिलने आए, पर बेटी को नहीं पहचाना

अखबारों में पढ़कर सिलिया के पिता जीवन गुडिय़ा और चाचा फिलिप गुडिय़ा उससे मिलने पहुंचे। पर, चूंकि चाचा ने ही उसे दिल्ली भेजा था, इसलिए सिलिया उन्हें देखकर घबरा गई। उसे लगा चाचा फिर उसे दिल्ली भेज देंगे। उसने चाचा को पहचानने से इनकार कर दिया। उधर, पिता ने भी उसे पहचानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से पुलिस, सीआईडी पुलिस और दिया संस्थान लगातार उसके माता-पिता से सिलिया को ले जाने का आग्रह कर रहे हैं। लेकिन, परिजन उसे ले जाने आते ही नहीं।
अभागे होते हैं ऐसे माता-पिता
दीया संस्थान की संचालिका सीता स्वांसी का कहना है कि सिलिया के माता-पिता अभागे हैं, जो इतनी होनहार और सुंदर बेटी को नहीं ले जा रहे। हम उन्हें आज भी गलती सुधारने की सलाह देते हैं। पर, उसके पिता कहते हैं कि अपने खाने-पीने का ठिकाना नहीं, उसे लाकर क्या करेंगे। सीडब्ल्यूजे की अनुमति के बाद सिलिया को मैंने अपने पास रख लिया। वह न्यू पुलिस लाइन स्थित सरकारी स्कूल में पढऩे भी जाती है।
 साभार: दैनिक भास्कर