मन में आक्रोश, दिल में ज्वाला

शोषित महिलाओं को उनका हक, अधिकार 
और मान-सम्मान दिलाना जीवन का लक्ष्य  

 रांची : पति-पत्नी के बीच आपसी मनमुटाव की बात स्वाभाविक है। आपसी संवाद से शिकायतें आसानी से दूर हो सकती हैं। घरेलू हिंसा और दुष्कर्म के सवाल भीतर से मथते हैं। मन को आक्रोशित करते है। आत्मा को कचोटते हैं। दिल में ज्वाला पैदा करते हैं। इसे बर्दाश्त करना कायरता है। मैं इसके खिलाफ किसी भी हद तक जा सकती हूं। सीता स्वांसी कुछ ऐसी ही विचारधारा की हैं।

छोड़ दी कई अच्छी नौकरियां : सीता ने वर्ष 2004 में महिलाओं की पीड़ा को समझा और उसे महसूस किया। इनके अंदर जुनून है समाज की उन शोषित महिलाओं को उनका हक, अधिकार और मान-सम्मान दिलाने का। इतिहास में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने कई अच्छी नौकरियां तक छोड़ दी। मन में कई उलझनें थीं। लेकिन, जब पीड़ित महिलाओं से इनकी मुलाकात हुई और उन महिलाओं ने खुलकर अपनी व्यथा सुनाई, तो मन-मस्तिष्क में हलचल-सी उत्पन्न हुई। सीता को अपने जीवन का मकसद मिल गया और पीड़ित महिलाओं को उनका हमदर्द।


 आठ सौ महिलाओं को मिली जिंदगी : महिलाओं की समस्याओं को सुनने के बाद इनके लिए दिन-रात एक समान होते हैं। रोती-बिलखती महिलाओं की चीत्कार को सुन सीता कभी चंडी बन जाती हैं, तो कभी उनके भविष्य को लेकर चिंतित भी रहती हैं। अब तक लगभग आठ सौ महिलाएं इनके सहयोग से खोई जिंदगी वापस पा चुकी है। वर्ष 2004 में सबसे पहले इन्होंने मांडर प्रखंड की 100 शिक्षिकाओं को पैसा दिलाया। मांडर के एक निजी स्कूल में कार्यरत इन शिक्षिकाओं को संबंधित एजेंसी पैसा देने में आनाकानी कर रही थी। इसके बाद कांके प्रखंड की एक महिला को सदर ने फतवा जारी कर 25 दिन के लिए गांव से निकाल दिया था। उस महिला ने दूसरी शादी कर ली थी। मामला राज्य महिला आयोग में गया और सदर को हाजिर होना पड़ा। सीता स्वांसी ने इस मामले में अहम भूमिका निभाई और उस महिला को उसका परिवार वापस दिलाया।

मानव तस्करों में खौफ : वर्ष 2004 से अब तक न जाने कितने मामले सीता के पास आए और उन्होंने पूरी तन्मयता के साथ सभी मामलों में सफलता पाई। मानव तस्करी के क्षेत्र में भी सीता एक ऐसा नाम है, जिससे मानव तस्करी करनेवाली एजेंसियों में खौफ है। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की मानव तस्करी मामले में इन्होंने बाबा बामदेव और आकाश राठी जैसे मानव तस्करों को गिरफ्तार कराया। 25 दिसंबर 2012 को पहली बार इनके सहयोग से सीआइडी की टीम ने झारखंड की 136 लड़कियों को मानव तस्करों के हाथ से छुड़ाया। सीता दीया सेवा संस्थान में सचिव के पद पर कार्यरत हैं। वह कहती हैं कि यह काम जोखिम भरा है। लेकिन महिला होने के नाते मैं किसी महिला को तड़पती नहीं देख सकती। मैने इन महिलाओं की पीड़ा को न सिर्फ महसूस किया, बल्कि उस पीड़ा के एक-एक क्षण को जिया है।

अनेक महिलाओं को बनाया स्वावलंबी : महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में भी इन्होंने सफलता का परचम लहराया है। कांके प्रखंड में इन्होंने 700 महिला समितियों का गठन किया, जो वर्तमान में पॉल्ट्री, नर्सरी, बकरी पालन, मशरूम की खेती, फूलों की खेती और जड़ी क्राफ्ट का प्रशिक्षण प्राप्त कर आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। रांची, खूंटी और सिमडेगा के 1034 ड्रॉप आउट छात्रों को स्कूल से जोड़ने का काम भी इन्होंने किया है।