दिल्‍ली में खुलेआम बिक रही हैं बेटियां

एक जोड़ी बैल की कीमत 30 हजार रुपये
एक पुराने स्कूटर की कीमत 15 हजार रुपये
पर एक ‘गुड़िया’ की क़ीमत सिर्फ दो हजार रुपये

 आप यकीन करेंगे कि आज के इस दौर में भी बैल और सेकेंड हैंड स्कूटर से सस्ती कीमत बेटियों की है? क्या आप यकीन करेंगे कि आज के इस दौर में भी बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में बेटियां खरीदी और बेची जा रही हैं? बाकायदा दुकानों में इंसानों की मंडी लग रही है? यकीन नहीं आता ना?

जी हां, देश की बेटियां बिक रही हैं. देश की ‘गुड़िया’ बिक रही है. देश की लाडली बिक रही है. ना सिर्फ बिक रही है बल्कि बेहिसाब बिक रही है. गलियों में बिक रही है, दुकानों में, गांवों और शहरों में बिक रही है.


ये वो खौलता हुआ सच है जो आज आपको झकझोर कर रख देगा. आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी जब आप 21वीं सदी की उस मंडी को देखेंगे जहां आज भी इंसानों को गुलामों और जानवरों की तरह खरीदा और बेचा जाता है. आपको अपनी आंखों देखी पर भी यकीन नहीं आएगा कि कैसे बड़े-बड़े शहरों में, महानगरों में बेटियां बिक रही हैं. और खरीदने वाले खरीद रहे हैं.

कभी नौकरी के नाम पर, तो कभी शादी के नाम पर, कभी विदेश भेजने के नाम पर तो कभी घरों में काम करने वाली के नाम पर लड़कियों की खरीद-फरोख्त जारी है. छोटे-छोटे कस्बों, गांवों से भेड़-बकरियों की तरह लड़कियों को शहरों में लाया जा रहा है. उनकी गरीबी की बोली लगाई जा रही है और फिर उन्हें मंडी में उतार दिया जा रहा है. बाकी छोड़िए अकेले सरकारी आंकड़ों की बात करें, तो सिर्फ पिछले साल देश में तकरीबन 4 हज़ार लड़कियां खरीदी और बेची गईं. जबकि गैर-सरकारी आंकड़े इससे करीब सौ गुना ज्यादा हैं.

सबसे खतरनाक तस्वीर तो देश की राजधानी दिल्ली की है. जहां प्लेसमेंट एजेंसियों की आड़ में मानव तस्करी के धंधे पर क़ानून का मुलम्मा चढ़ा कर धंधेबाज लगातार सबकी आंखों में धूल झोंक रहे हैं. ह्यूमन ट्रैफिकिंग की अंधी गलियों का सच रौंगटे खड़े करनेवाला है.

दरअसल आज तक की टीम को पता चला कि बेटियों की खरीद-फऱोख्त की सबसे बड़ी मंडी आजकल दिल्ली में लगी हुई है. अलग-अलग नामों से अलग-अलग दुकानें खुली हुई हैं. और उन दुकानों में बाकायदा इंसानों की खरीद फरोख्त होती है. लिहाजा इसी के बाद जब आज तक ने ऐसी दुकानों में झांकने की कोशिश की, तो खुलेआम चल रही इस मंडी की हकीकत देख कर हम सन्न रह गए.

इंसानों की मंडी यानी ह्यूमन ट्रैफिकिंग की दुनिया अपने-आप में एक बड़ा तिलिस्म समेटे है. मानव तस्करी के सबसे बड़े ठिकाने यानी दिल्ली में ह्यूमन ट्रैफिकिंग की हकीकत क्या है, ये जानने के लिए आज तक ने एक-एक कर दिल्ली में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के कई अड्डों का रुख किया और इस कोशिश में जो कुछ दिखा, वो वाकई हैरतअंगेज था. इंसानों के इन दुकानों में घरेलू काम-काज से लेकर जिस्मफरोशी तक के लिए लड़कियां बिक रही थीं.

शकुरबस्तीदिल्ली के उत्तर-पश्चिमी कोने पर बसा एक रिहायशी इलाका. अकेले इसी इलाके में प्लेसमैंट एंजेसी के नाम से ह्यूमन ट्रैफिकिंग की तकरीबन 180 से ज्‍यादा दुकाने चल रही हैं, जो सालों से तमाम कायदे कानूनों को ठेंगा दिखाकर इंसानों की खरीद-फरोख्त में जुटे हैं. इन्हीं एजेंसी की हकीकत जानने के लिए शकुरबस्ती की तंग गलियों से होते हुए आज तक जा पहुंचा ऐसी ही एक प्लेसमैंट एजेंसी एस.के. इंटरप्राइजेज के दफ्तर तक. जहां मनोज नाम का एक ऐसा दलाल है, जो सालों से ये धंधा कर रहा था. आज तक ने उससे मेड सर्वेंट हायर करने से बातचीत की शुरुआत की और लगातार आगे बढ़ते गए. हमने उससे पूछा...
सवाल - कमीशन कितना लगेगा?
जवाब - कुल 35 हजार. 20 हजार एजेंट का और 15 हजार तो हमारा भी बनता है.सवाल - लोगों की कैसी-कैसी डिमांड आती है?
जवाब - अरे सर, कुछ लोग तो बिलकुल अलग ही डिमांड करते हैं.सवाल - क्या करते हैं बताइए तो सही...
जवाब - एक बार दिल्ली के ही एक एसएचओ आए थे और कहने लगे ऐसी नौकरानी दो जो पूरा ख्याल रखे, पूरा ख्याल मतलब सबकुछ करे...सवाल - तो ऐसी नौकरानियां भी होती हैं क्या?
जवाब - बिलकुल होती हैं, आप पैसे खर्च करिए, महीने के करीब 30 से 40 हजार लगेंगे लेकिन वेल मेंनटेन होगी, आप बाहर भी ले जा सकते हो अपने साथ, इंग्लिश भी बोलती होगी.सवाल - कहां से आएंगी ये लड़कियां?
जवाब - दार्जिलिंग से लाएंगे, शिलॉंग में भी ऐसी लड़कियां मिल जाएंगी. आप चिंता मत करो आपको पैसे खलेगा नहीं..सवाल - कबतक मिल जाएगी हमको ऐसी लड़की?
जवाब - आप 5 से 7 दिन का टाइम दो मैं अरेंज कर दूंगा.
मुंहमांगी कीमत के बदले ये दलाल हमें ऐसी लड़की लाकर देने की बात भी करने लगा जो मेड सर्वेंट होने के साथ-साथ जिस्मफरोशी के लिए भी तैयार हो. लगे हाथ अपना रौब गांठने के लिए मनोज नाम के इस शख्स ने यहां तक बता दिया कि लड़कियों की इस तरह की खरीद-फरोख्त में खुद दिल्ली पुलिस के अफसर भी शामिल हैं.
हम एक प्लेसमैंट एजेंसी की हकीकत देख चुके थे. लिहाजा, हम वहां से निकले और एक दूसरी एजेंसी में जा पहुंचे. एक बेनाम एजेंसी. इस एजेंसी में एक महिला बैठी थी, जो हमे देखते ही बातचीत के लिए तैयार हो गई. यहां भी पहले हमने मेड सर्वेंट के लिए बात की. और उसने जो कुछ बताया, उससे साफ हो गया कि किस तरह देश के ग्रामीण इलाकों से किस तरह भोली-भाली लड़कियों को फंसा कर उन्हें शहरों में बेच दिया जाता है.
सवाल - आप ही जाती हो लड़की लोगों को लाने के लिए...
जवाब - हां, मैं ही जाती हूं. झारखंड से लाती हूं लड़कियां.सवाल - एक बार में कितनी लड़कियां ले आती हो.
जवाब - जाते हैं तो 4 से 5 लड़कियां ले आते हैं.सवाल - डर नहीं लगता आपको?
जवाब - नहीं डर नहीं लगता है, सबको रास्ते में खाते-पिलाते ले आती हूं.
ये एजेंट नाबालिक यानी महज 11 साल की लड़की को भी हमें बेचने के लिए तैयार हो गई.
सवाल - हमारे दोस्त के घर में काम के लिए छोटी लड़की की जरूरत है.
जवाब - हां ठीक है, मैं दे दूंगी. आप बता देना कि कहां रहेगी. लड़की मैं भेज दूंगी कोई दिक्कत नहीं है.
जाहिर है, बिना किसी पर्दे के प्लेसमैंट एजेंसी के नाम पर चल रही ये दुकानें ये साबित करने को काफी हैं कि किस तरह पुलिस की जानकारी में दिल्ली में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का कारोबार धड़ल्ले से जारी है.
गरीबी ने उसे मजबूर किया तो वो अपने घर से बाहर निकली, नौकरी करने. पर नौकरी के नाम पर वो एक बार नहीं आठ-आठ बार बिकी. पहली बार उसकी कीमत लगी सिर्फ दो हजार रुपये. लेकिन फिर ऐसा बिकना शुरू हुई कि कीमत दो हजार रुपये से बढ़कर 30 हजार रुपये तक पहुंच गई. दसियों हाथों से बिकने और बलात्कार का शिकार होने के बाद अब इस ‘गुड़िया’ को ये समझ में नहीं आ रहा है कि आख़िर वो जाए तो कहां जाए?
नाम -- सरिता तांती
उम्र -- 18 साल
पता -- उदालगुड़ी, असम
क़ीमत -- सिर्फ 30 हजार रुपये
सुनने में ये बात बेशक अजीब लगे लेकिन ह्यूमन ट्रैफिकिंग यानी मानव तस्करी की दुनिया में इस वक़्त इस लड़की की कीमत कुछ इतनी ही है.
जिस दौर में इंसान चांद और मंगल की दूरियां नाप रहा हो, लार्ज हाइड्रोन कोलाइडर जैसे प्रयोग हो रहे हों, उस दौर में अगर देश की राजधानी दिल्ली में किसी लड़की को चंद रुपयों में किसी बेजान चीज या फिर भेड़-बकरी की तरह खरीद-बेचा जाए, तो फिर इसे आप क्या कहेंगे? असम के एक बेहद पिछड़े इलाके से आनेवाली इस लड़की की कहानी कुछ ऐसी ही है.
आज से आठ साल पहले जब इस लड़की की पहली बार बोली लगी थी, तब इसकी कीमत सिर्फ 2 हजार रुपये थी. लेकिन तब से लेकर अब तक इसकी कीमत में पूरे 15 गुना का इजाफा हो चुका है. यानी 2 हज़ार रुपये से बढ़कर इसकी कीमत अब 30 हजार रुपये तक पहुंच चुकी है. लेकिन सितम देखिए अपने अब तक के तमाम उम्र में ये लड़की उतने रुपये भी नहीं कमा सकी है, जितने में इस वक़्त इसकी बोली लग रही है. मानव तस्करी की दुनिया का यही सच है.
सरिता तांती- ‘मुझे कई बार बेचा गया, धोखा दिया गया...’सरिता को दिल्ली में अच्छा काम दिलाने के नाम पर उसी के गांव का एक लड़का तब दिल्ली लेकर आया था, जब उसकी उम्र सिर्फ 10 साल थी. 2 भाइयों और 7 बहनों में एक सरिता का परिवार बेहद ग़रीब था और सरिता उस नादान उम्र अपने परिवार की तकदीर बदलने के इरादे से घर से निकली थी. इसके बाद उसके परिवार की तकदीर तो नहीं बदली, लेकिन सरिता की तकदीर जरूर बदल गई.

पंजाबी बाग की एक प्लेसमैंट एजेंसी अनुराग इंटरप्राइजेज़ के जरिए सरिता इन आठ सालों में पूरे आठ बार बेची गई और अलग-अलग घरों में नौकरानी का काम करती रही. लेकिन एक बार भी उसे अपनी तनख्वाह नहीं मिली. इस दौरान कभी किसी ने सरिता को सालों-साल दड़बे में बंद रखा, तो किसी ने कई-कई दिनों तक भूखा रखा. एक बार तो पंजाब के खन्ना में काम करने के दौरान उस पर चोरी का इल्जाम लगाकर उसके हाथ तक जला दिए गए.

लेकिन सरिता की ज़िंदगी का असली दर्द अभी बाकी था. इस ज्‍यादती के बाद सरिता जब भाग कर एक बार फिर उसी प्लेसमैंट एजेंसी में पहुंची, तो यहां बालेश्वर नाम के एक लड़के ने उसके साथ बलात्कार करना शुरू कर दिया. इसके बाद तो सरिता के साथ जुल्मो-सितम की सारी हदें ख़त्म हो गई और बालेश्वर ने उसका गर्भपात तक करवाया. आखिर में जब सरिता ने इस सिलसिले में दिल्ली के सरस्वती विहार थाने में शिकायत की, तो पुलिस ने बालेश्वर के खिलाफ़ कार्रवाई करने के बजाय दोनों का समझौता करा दिया. अब बालेश्वर का हौसला बढ़ा और उसने जबरदस्ती सरिता की मांग में सिंदूर भर दिया.

सरिता तांती- ‘मेरे साथ कई बार रेप किया, अबॉर्शन करवाया गया...’
लेकिन जब सरिता ने बालेश्वर को दूसरी लड़कियों के साथ भी ठीक ऐसा ही करते देखा, तो फिर वो बालेश्वर के चंगुल से भाग निकली. अब हालत ये है कि वो बालेश्वर और उसके दोस्तों को सजा दिलाना चाहती है. लेकिन ऐसा कैसे मुमकिन होगा, ये फिलहाल कोई नहीं जानता.
ये है राजधानी दिल्‍ली की हकीकतदेश की राजधानी होने के नाते अगर दिल्ली को पूरी दुनिया में एक बड़ा मकाम हासिल है, तो ह्यूमन ट्रैफिकिंग का सबसे बड़ा ठिकाना होने के नाते इस शहर की बदनामी भी कम नहीं है. लेखिन आखिर वो क्या बात है, जो दिल्ली को मानव तस्करी का सबसे बड़ा गढ़ बनाती है. घर में काम दिलाने से लेकर शादी के झांसे और फिर जिस्मफरोशी तक, जब दिल्ली की हकीकत जानेंगे तो आप चौंक जाएंगे.

कहने तो दिल्‍ली वो शहर है, जहां से देश चलता है. यही वो जगह है जहां सारे कानून बनते हैं और यही वो ठिकाना है, जहां से ये पूरे देश में लागू होते हैं. मगर, अफसोस ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले में सारे कानून शायद यहीं आकर दम तोड़ देते हैं. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो आज दिल्ली देश में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के सबसे बड़े अड्डे के तौर पर बदनाम नहीं होती.

एक ऐसा अड्डा, जो सोर्स भी है, ट्रांजिट रूट भी और डेस्टिनेशन भी. यानी ये वो जगह है, जहां इंसानों की खरीद-फरोख्त की शुरुआत भी होती है, दूसरे शहरों से उन्हें आगे बेचने के लिए यहां लाया भी जाता है और यहीं जिस्मफरोशी के अड्डों पर या फिर अलग-अलग जगहों पर उन्हें बेचा भी जाता है.

गरीबी और भुखमरी के चलते हर साल देश के पिछड़े राज्यों से हजारों लोग दिल्ली समेत देश के तमाम बड़े शहरों की तरफ भागे आते हैं. और मानव तस्करी के धंधे से जुड़े लोग गरीबों की इसी मजबूरी का सालों से फायदा उठा रहे हैं. सबसे पहले ऐसे लोगों ख़ासकर गरीब लड़कियों को घरों या फैक्ट्रियों में काम दिलाने के बहाने बहलाया फुसलाया जाता है और फिर ट्रेनों से सीधे दिल्ली पहुंचा दिया जाता है.

पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, असम और ओडिशा जैसे राज्यों से पहले मानव तस्करी कर लड़कियों को ट्रेनों में दिल्ली लाया जाता है और फिर यहां से या तो उन्हें दिल्ली में ही बेच दिया जाता है या फिर प्लेसमैंट एजेंसी की मदद से हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान के अलग-अलग शहरों में पहुंचा दिया जाता है.
खास बात ये है कि इस दौरान एक तरफ़ तो लड़कियों से किए गए वायदे पूरे नहीं होते, दूसरी तरफ उन्हें यौन शोषण का शिकार भी बना दिया जाता है. लेकिन ये हकीकत सिर्फ दिल्ली की नहीं है, बल्कि दिल्ली के अलावा देश के तमाम दूसरे शहरों में भी मानव तस्करी का कारोबार बदस्तूर है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक ये धंधा साल दर साल लगातार बढ़ रहा है.

इन आंकड़ों में मुताबिक साल 2009 में मानव तस्करी के जहां तकरीबन 3000 मामले सामने आए थे, वहीं एक साल बाद यानी 2010 में ये 3422 मामले रिकॉर्ड किए गए. इसके बाद अगले साल यानी 2011 में ये आंकड़ा 3517 तक पहुंच गया और मानव तस्करी का शिकार होनेवाले इन लोगों में ज्‍यादा लडकियां थी, जिन्हें या तो जिस्मफरोशी के अड्डों तक पहुंचा दिया गया या फिर खाड़ी देशों में बेच दिया गया.

अब मानव तस्करी का कारोबार जब इतने बड़े पैमानों पर और बेरोक-टोक अंदाज में हो, तो कानून के मुहाफिजों पर शक होना लाजिमी है. लेकिन जानकारों की मानें तो प्लेसमैंट एजेंसी की आड़ में खुद दिल्ली पुलिस चंद रुपयों के बदले इंसानी खदीद-फरोख्त के धंधे पर आंखें मूंदे रहती हैं. और तो और पंजाबी बाग, रजौरी गार्डन समेत पश्चिमी दिल्ली के कई थानों की पुलिस को इसके लिए बंधी-बंधाई रकम मिलती है.