ये हैं मानव व्यापार के गुनहगार


राज्यके आदिवासी इलाकों से मानव तस्करी कर देश के अलग-अलग महानगरों में ले जाने का सिलसिला वक्त के साथ सिर्फ बढ़ा है, बल्कि और मजबूत हुआ है। मानव तस्करी के इस धंधे में प्लेसमेंट एजेंसियां खतरनाक रोल निभा रही हैं। इन एजेंसियों के लोग दिल्ली से लेकर झारखंड तक में फैले हैं। जो झारखंड के ग्रामीण इलाकों से लड़कियों और बच्चों को फंसाकर दिल्ली तक लाने, ठहराने और फिर किसी कोठी में नौकरी लगाने का पूरा ताना-बाना बुनते हैं। यह हकीकत है कि दिल्ली और झारखंड में करीब 400 गैंग सक्रिय होकर छोटे बच्चों, बच्चियों के मानव तस्करी कर रहे हैं। झारखंड से हर साल 30 से 35 हजार लड़कियां दिल्ली या फिर अन्य महानगरों में ले जाई जा रही हैं जिनका आर्थिक, मानसिक और शारीरिक शोषण हो रहा है।

नहींलग पा रही प्लेसमेंट एजेंसियों पर लगाम

मानवतस्करी करा रही इन प्लेसमेंट एजेंसियों को लेकर ना तो पुलिस के पास कोई पुख्ता कानून है और ही किसी दूसरे सरकारी महकमे के पास। दिल्ली हाइकोर्ट ने साल 2009 में दिए गए अपने एक फैसले में सभी प्लेसमेंट एजेंसियों को श्रम विभाग से रजिस्टर्ड करवाने की बात कही थी। लेकिन इस आदेश का अनुपालन नहीं हुआ। झारखंड में भी इन प्लेसमेंट एजेंसियों के कामकाज पर कारगर रोक नहीं लग पा रही है।

दिल्ली पुलिस से लिया जा रहा है सहयोग

मानवव्यापार रोकने और कथित एजेंटों प्लेसमेंट एजेंसियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। दिल्ली पुलिस को सूची दी गई है। वहां से जवाब भी आया है। परिणाम भी बेहतर मिल रहे हैं। झारखंड पुलिस लगातार इस मामले का फॉलोअप कर रही है।

राजीवकुमार, डीजीपीझारखंड

दिल्ली के इन इलाकों में है ऐसी एजेंसियों की भरमार

मात्र 2000 से 3000 रुपए मिलता है वेतन

दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी चलाने वालों ने शकरपुर, विकासपुरी, उत्तम नगर, संगम विहार, कुसुम पुर पहाड़ी, पीतमपुरा, कंझावला, नरेला जैसे कई रिहायशी इलाकों और बस्तियों में किराए पर कमरे ले रखे हैं। जहां से झारखंड से लाई गई लड़कियों को चंद दिनों के लिए रखा जाता है और फिर कोई ग्राहक मिलते ही इन लड़कियों को उनके हवाले कर कमीशन के नाम पर मोटी रकम ऐंठ ली जाती है। इन इलाकों में प्लेसमेंट एजेंसियों के सैंकड़ों दफ्तर चलते हैं, जिनपर सरकार का कोई लगाम नहीं है। ये बेखौफ होकर एजेंसी चलाते हैं।